आइए आज समझते हैं कि सभ्यता क्या है? कई बार हम अपनी बोलचाल में सभ्यता और संस्कृति शब्दों का उपयोग करते हैं. (अगले पोस्ट में संस्कृति पर चर्चा करेंगे, अभी यहां सभ्यता को बेहतर ढंग से समझ लेते हैं.)
सभ्यता से मनुष्य के भौतिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है।
प्रारम्भ में मनुष्य आँधी-पानी, सर्दी-गर्मी सब कुछ सहता हुआ जंगलों में रहता था, धीरे धीरे उसने इन प्राकृतिक विपदाओं से अपनी रक्षा के लिए पहले गुफाओं और फिर क्रमशः लकड़ी, ईंट या पत्थर के मकानों की शरण ली।
अब वह लोहे और सीमेन्ट की गगनचुम्बी अट्टालिकाओं का निर्माण करने लगा है। प्राचीन काल में यातायात का साधन सिर्फ मानव के दो पैर ही थे। फिर उसने घोड़े, ऊँट, हाथी, रथ और बहली का आश्रय लिया। अब मोटर और रेलगाड़ी के द्वारा थोड़े समय में बहुत लम्बे फासले तय करता है, हवाई जहाज द्वारा आकाश में भी उड़ने लगा है।
पहले मनुष्य जंगल के कन्द, मूल और फल तथा आखेट से अपना जीवन यापन करता था। बाद में उसने पशु-पालन और कृषि के आविष्कार द्वारा आजीविका के साधनों में उन्नति की। पहले वह अपने सब कार्यों को शारीरिक शक्ति से करता था। फिर उसने पशुओं को पालतू बनाकर और सधाकर उनकी शक्ति का हल, गाड़ी आदि में उपयोग करना सीखा।
अन्त में उसने हवा, पानी, वाष्प, बिजली और अणु की भौतिक शक्तियों को वश में करके ऐसी मशीनें बनाईं, जिनसे उसके भौतिक जीवन में काया-पलट हो गई।
मनुष्य की यह सारी प्रगति सभ्यता कहलाती है।
'सभ्य' का शाब्दिक अर्थ है, 'जो सभा में सम्मिलित होने योग्य हो'। इसलिए, सभ्यता ऐसे सभ्य व्यक्ति और समाज के सामूहिक स्वरूप को आकार देती है।
सभ्य समाज अक्सर उन्नत कृषि, लंबी दूरी के व्यापार, व्यावसायिक विशेषज्ञता और नगरीकरण आदि की उन्नत स्थिति का द्योतक है।
इन मूल तत्वों के अलावा, सभ्यता कुछ माध्यमिक तत्वों, जैसे विकसित यातायात व्यवस्था, लेखन, मापन के मानक, संविदा एवं नुकसानी पर आधारित विधि-व्यवस्था, कला के महान शैलियों, स्मारकों के स्थापत्य, गणित, उन्नत धातुकर्म एवं खगोलविद्या आदि की स्थिति से भी परिभाषित होती है।
‘सभ्यता’ का अर्थ है जीने के बेहतर तरीके और कभी-कभी अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपने समक्ष प्रकृति को भी झुका देना। इसके अन्तर्गत समाजों को राजनैतिक रूप से सुपरिभाषित वर्गों में संगठित करना भी सम्मिलित है जो भोजन, वस्त्र, संप्रेषण आदि के विषय में जीवन स्तर को सुधारने का प्रयत्न करते रहते हैं।
इस प्रकार कुछ वर्ग अपने आप को अधिक सभ्य समझते हैं, और दूसरों को हेय दृष्टि से देखते हैं।
इंसान तीन स्तरों पर जीता है और व्यवहार करता है - भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक। भौतिक, सामाजिक और राजनैतिक रूप से जीवन जीने के उत्तम तरीकें तथा चारों ओर की प्रकृति के बेहतर उपयोग को ‘सभ्यता’ कहा जा सकता है।
संस्कृति को समझने के बाद हम ये समझ पाएंगे कि जरूरी नहीं कि जो अमीर हो, जिसके पास बहुत सारे संसाधन हों, वो सुसंस्कृत भी हो.