आइए आज समझते हैं कि संस्कृति क्या है। हमारी संस्कृति ही हमारी असली पहचान है। संस्कृति का अर्थ समझने के बाद आप इसे आसानी से समझ पाएंगे।
सभ्यता (Civilization) से मनुष्य के भौतिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है जबकि संस्कृति (Culture) से मानसिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है।
मनुष्य केवल भौतिक परिस्थितियों में सुधार करके ही सन्तुष्ट नहीं हो जाता। वह भोजन से ही नहीं जीता, शरीर के साथ मन और आत्मा भी है। भौतिक उन्नति से शरीर की भूख मिट सकती है, किन्तु इसके बावजूद मन और आत्मा तो अतृप्त ही बने रहते हैं। इन्हें सन्तुष्ट करने के लिए मनुष्य अपना जो विकास और उन्नति करता है, उसे संस्कृति कहते हैं।
मनुष्य की जिज्ञासा का परिणाम धर्म और दर्शन होते हैं। सौन्दर्य की खोज करते हुए वह संगीत, साहित्य, मूर्ति, चित्र और वास्तु आदि अनेक कलाओं को उन्नत करता है। सुखपूर्वक निवास के लिए सामाजिक और राजनीतिक संघटनों का निर्माण करता है। इस प्रकार मानसिक क्षेत्र में उन्नति की सूचक उसकी प्रत्येक सम्यक् कृति संस्कृति का अंग बनती है। इनमें प्रधान रूप से धर्म, दर्शन, सभी ज्ञान-विज्ञानों और कलाओं, सामाजिक तथा राजनीतिक संस्थाओं और प्रथाओं का समावेश होता है।
संस्कृति उस विधि का प्रतीक है जिसके आधार पर हम सोचते हैं; और कार्य करते हैं।
संस्कृति मानव जनित मानसिक पर्यावरण से सम्बंध रखती है जिसमें सभी अभौतिक उत्पाद एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को प्रदान किये जाते हैं।
संस्कृति के दो भिन्न उप-विभाग कहे जा सकते हैं- भौतिक और अभौतिक। भौतिक संस्कृति उन विषयों से जुड़ी है जो हमारी सभ्यता कहते हैं, और हमारे जीवन के भौतिक पक्षों से सम्बद्ध होते हैं, जैसे हमारी वेशभूषा, भोजन, घरेलू सामान आदि। अभौतिक संस्कृति का सम्बध विचारों, आदर्शों, भावनाओं और विश्वासों से है।
संस्कृति आन्तरिक अनुभूति से सम्बद्ध है जिसमें मन और हृदय की पवित्रता निहित है। इसमें कला, विज्ञान, संगीत और नृत्य और मानव जीवन की उच्चतर उपलब्धियाँ सम्मिहित हैं जिन्हें 'सांस्कृतिक गतिविधियाँ' कहा जाता है।
अब आप ये समाज पाएंगे कि एक व्यक्ति जो निर्धन है, सस्ते वस्त्र पहने है, वह असभ्य तो कहा जा सकता है परन्तु वह सबसे अधिक सुसंस्कृत व्यक्ति भी हो सकता है। एक व्यक्ति जिसके पास बहुत धन है वह सभ्य तो हो सकता है पर आवश्यक नहीं कि वह सुसंस्कृत भी हो। अतः जब हम संस्कृति के विषय में विचार करते हैं तो हमें यह समझना चाहिए कि यह सभ्यता से अलग है। संस्कृति मानव के अन्तर्मन का उच्चतम स्तर है।
सांस्कृतिक विकास एक ऐतिहासिक प्रक्रिया है। हमारे पूर्वजों ने बहुत सी बातें अपने पुरखों से सीखी है। समय के साथ उन्होंने अपने अनुभवों से उसमें और वृद्धि की। जो अनावश्यक था, उसको उन्होंने छोड़ दिया। हमने भी अपने पूर्वजों से बहुत कुछ सीखा। जैसे-जैसे समय बीतता है, हम उनमें नए विचार, नई भावनाएँ जोड़ते चले जाते हैं और इसी प्रकार जो हम उपयोगी नहीं समझते उसे छोड़ते जाते हैं। इस प्रकार संस्कृति एक पीढी से दूसरी पीढी तक हस्तान्तरिक होती जाती है। जो संस्कृति हम अपने पूर्वजों से प्राप्त करते हैं उसे सांस्कृतिक विरासत कहते हैं।
मुझे लगता है कि हमने जो आवश्यक था वही छोड़ दिया है या वैसी कई चीज़ों को छोड़ते हुए आ रहे हैं। हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचा नहीं पाए हैं। बहुत कुछ गवां दिया है और जो कुछ बाकि है उसे भी आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचा पाएंगे या नहीं, इसमें भी संसय ही है।
अगर आप संस्कृति समझ पाएं तो अब आप ये आसानी से समझ सकते हैं कि जो फिल्में हम देखते हैं या जो कहानियां हम पढ़ते हैं कैसे वो हमारी संस्कृति को प्रभावित करते हैं। बड़ों के साथ बैठना, उनके साथ वक्त बिताना, उनको सुनना ये सब आखिर कितना महत्वपूर्ण है संस्कृति को बचाने के लिए।
पढ़ना और बैठ कर किसी को सुनना तो आज वैसे भी बहुत कम हो चुका है, अब इंसान सिर्फ़ देखने में व्यस्त है और वो क्या देख रहा है, आप बेहतर जानते हैं। अश्लीलता फिर चाहें वो देखने में हो, सुनने में हो, बोली में हो या पढ़ने में हो, संस्कृति की कितनी बड़ी दुश्मन है अब आप समझ सकते हैं।
क्या आपको नहीं लगता कि किसी भी समाज को अप्रत्यक्ष रूप से गुलाम बनाने के लिए ये जरूरी है कि हम उसका देखना, सुनना और बोलना बदल दें? शायद यही होता आ रहा है!
जागने के अलावे आखिर और क्या विकल्प है!
धन्यवाद!🙏