एक कविता हर माँ के नाम
घुटनों पर रेंगते - रेंगते ,
कब पैरों पर खड़ा हुआ ।
तेरी ममता की छाव में ,
न जाने कब में बड़ा हुआ ।
काला टीका , दूध मलाई ,
आज भी सब कुद्द वैसा है ।
मैं ही मैं हूँ हर जगह ,
प्यार ये तेरा कैसा है ?
सीधा - साधा भोला - भाला ,
मैं ही सबसे अच्छा हूँ
कितना भी हो जाऊँ बड़ा ,
" माँ " मैं आज भी तेरा बच्चा है ।।- २
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