" यूँ ही नहीं समझ जाती,बिन कहे वो "दर्द" मेरा..उसकी.. कोख ही तो थी,पहला "घर" मेरा.."
" समंदर की स्याही बनाकर शुरू किया था लिखना ,खत्म हो गई स्याही मगर मां की तारीफ बाकी है । "
एक कविता हर माँ के नाम
घुटनों पर रेंगते - रेंगते ,कब पैरों पर खड़ा हुआ ।तेरी ममता की छाँव में ,न जाने कब में बड़ा हुआ ।काला टीका , दूध मलाई ,आज भी सब कुछ वैसा है।मैं ही मैं हूँ हर जगह,प्यार ये तेरा कैसा है।सीधा - साधा भोला - भाला ,मैं ही सबसे अच्छा हूँ।कितना भी हो जाऊँ बड़ा ," माँ " मैं आज भी तेरा बच्चा है ।।" माँ " मैं आज भी तेरा बच्चा है ।।
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